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बेटी के जन्म पर जश्न, नाच-गानों के साथ गृह प्रवेश कर पेश की मिसाल

हनुमानगढ़।(मदनलाल पण्डितांवाली)
वक्त कितनी तेजी से बदल रहा है इसका अंदाजा हम कई उदाहरणों से लगा सकते हैं। लेकिन अब समाज को गौरवान्वित करने वाली ऐसी मिसाल भी दी जा सकती हैं कि बेटियों को बोझ समझने वाला दौर अब जा चुका है, अब बहुओं के घर आते ही उन्हें सास-ससुर और परिजन बेटी को जन्म देने का आशीर्वाद दे रहे हैं। अब बेटियों के जन्म लेते ही कई परिवारों में उत्साह और उत्सव का जश्न मनाया जाने लगा है। ढोल-नगाड़ों और शहनाइयों की गूंज अब बेटी की शादी में ही नहीं बल्कि, उसके जन्म पर भी सुनाई दे रही है। हाल ही में हनुमानगढ़ जिले के गांव पक्का सहारणा के सुभाष बारवासा के परिवार में जब बेटी का जन्म हुआ, तो परिवार का हर सदस्य खुशियों के गीत गाता नजर आया। दादा-दादी हों या नाना-नानी, या फिर परिवार का हर छोटा-बड़ा सदस्य खुशियों में सराबोर था। वही परिवार द्वारा नवजात बेटी के स्वागत के लिए घर में रिबन काटकर व थाली ढोल नगाड़े बजवाकर नवजात बेटी और मां को गृह प्रवेश करवाया बड़ी धूमधाम से बहू और पोती का स्वागत किया गया। वहीं माता-पिता की खुशी तो देखते बनती थी। हर किसी के चेहरे पर बिखरी रौनक रह-रह कर कह रही थी आज मंगल गाओ, नजर उतारो मेरे घर लक्ष्मी आई है। वही दादा सुभाष बारवासा कहते हैं कि हमारे परिवार में कई साल बाद बेटी का जन्म हुआ है। इससे पहले परिवार में सभी बेटे ही थे। इसीलिए घर में सभी को बेटी होने का ही इंतजार था। यहां तक कि बेटी हो इसके लिए सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। वहीं बेटे पंकज और बहू - रेखा ने बेटी होने के लिए ईश्वर से में मन्नत भी मांगी थी। जैसे ही मन्नत पूरी हुई पूरा परिवार ईश्वर का दिल से शुक्रिया अदा कर रहे हैं। दादी का कहना है कि हम खुशनसीब हैं कि भगवान ने हमारी सुनी और हमारे घर में बेटी का जन्म हुआ। साक्षात लक्ष्मी हमारे घर पधारी हैं।

*मां लक्ष्मी मानकर लिए कुमकुम के पद चिह्न*
बेटी के घर आते ही परिजनों ने सबसे पहले उसके पैरों में कुमकुम लगाया और एक सफेद कोरे कपड़े पर उसके पद चिह्न लिए। मां लक्ष्मी का रूप मानकर इन पदचिन्हों को पिता पंकज बारवासा ने माथे पर लगाया। फिर घर में प्रवेश किया। घर की दरो-दीवार गुब्बारों से सजे थे। बच्ची का ऐसा जोश और उत्साह से स्वागत किया गया कि जानें कौन सा उत्सव मना रहे हों।वही बेटी के आते ही घर में चारों ओर खुशियां छा गईं। बच्ची की मां रेखा ने नायक समाज को एक अनोखा संदेश दिया है। तो रेखा ने कहा कि बेटियां कल का भविष्य हैं। बेटियों को खूब पढ़ाना चाहिए। जबकि, पिता पंकज ने कहा कि हमारे लिए बेटे-बेटी में कोई भेद नहीं माना जाता। बेटा होता तो भी एक ही बात होती।

*ऐसे किया स्वागत*

जैसे ही रेखा अपनी बेटी के साथ अस्पताल से घर लौंटी, तो घर के दरवाजे पर उनका स्वागत ढोल-नगाड़ों के साथ किया गया। दीवाली के जश्न की तरह बम पटाखे फोड़कर परिवार के सदस्यों ने अपनी खुशी का इजहार किया। वहीं घर में प्रवेश करते ही रेखा और उनके पति पंकज बारवासा ने केक काटकर परिवार के साथ खुशियों के पल बिताए। सब उसे प्यार से सावी कहकर बुलाने लगे और ऑरिजनल नाम सांची बारवासा.रखा गया। रेखा बताती हैं कि घर वालों ने प्रेगनेंसी के समय ही बेटी का नाम सोच लिया था। सांची नाम रेखा और उनके पति पंकज के नाम के कॉम्बिेनेशन से रखा गया है। इस खुशी के मौके पर सुभाष ,संतोष, पंकज, रेखा, राजेश, मनिषा, गोमतीदेवी, मुकेश चांवरिया, नीतू, राकेश ,पूनम एवं ग्रामीण मौजूद रहे

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